Ubhaya roop jag jaan
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ईश्वरीय जगत में प्रवेश पाने के लिए संसार का ज्ञान अनिवार्य है
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ईश्वर को जानने के लिए श्रद्धा जरूरी, श्रद्धा की उत्पत्ति वैराग्य से, वैराग्य की उत्पत्ति संसार के ठीक ठीक ज्ञान से
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जब तक संसार को नहीं जानेंगे तब तक संसार से मन पृथक(राग द्वेष रहित) न होगा
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जब तक मन संसार से पृथक(राग द्वेष रहित) न होगा तब तक ईश्वरीय मार्ग में प्रवेश कैसे होगा
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बुद्धि का ये डिसिशन है की संसार में सुख है इसलिए संसार से अटैच्ड है मन, वैराग्य नहीं तो ईश्वरीय मार्ग में आगे कैसे बढ़े
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जहाँ हमारी आसक्ति है उस पर ध्यान देना है
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भगवान का बनाया हुआ पंच महाभूत संसार शरीर के लिए आवश्यक है इसको त्याग कर जीवित नहीं रह सकते
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कोई अगर जानता नहीं पैसा क्या वस्तु होती है उसका ‘अर्थ’ नहीं ‘समझता’ कभी देखा नहीं तो उसको पैसे के मिलने/छीनने में कोई सुख दुख नहीं होता, जैसे 2 साल का बच्चा
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किसी संसारी वस्तु(पैसा, खाद्य पदार्थ) में जो मन से भावना बनाते हैं अपनी अपनी उससे हम सुखी दुखी होते हैं
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1 लड़की को 1 ने सहेली बनाया, 1 ने बेटी बनाया, 1 ने बहन बनाया, 1 ने बीवी, शादी के बाद जिसने बीवी बनाया उसको मिल गई वो सुखी, जिससे छीनी सहेली माँ/बाप भाई वो दुखी, तो उस लड़की में सुख कहाँ है ? ये तो अपने अपने ideas का कमाल है
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कोई संसारी वस्तु हो, स्त्री हो, पुरुष हो, समान हो, वो हमको मिल जाए, ये कमाना बनाया, नहीं मिला दुखी हुए, कमाना न बनाते तो आराम से बैठे रेहते कोई परेशानी नई, वो हमको मिल जाए ये idea बनाया दुख शुरू हो गया
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जिसने कोई idea(मिलने की कमाना) कहीं नहीं बनाया वो महापुरुष है उसको कोई दुख नहीं मिला क्योंकि वो जानता है इसमें सुख नहीं(नश्वर + मरने के बाद तो छूटेगा ही), ये यहाँ सामान सब सरकारी है, ये संसार सरकारी है
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संसार में जो हम लोग अपनी नियत बनाते हैं अच्छी बुरी, अटैचमेंट या द्वेष करते हैं ये हमारा बनाया हुआ संसार डेंजरस है यही दुख का कारण है इसके कारण हम गड़बड़ में पड़े हैं अनादिकाल से इसलिए उसको ठीक करना है
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महापुरुषों का अपरिवर्तनीय निष्कर्ष ‘हम आत्मा हैं हमारा कोई नाता संसार से नहीं’ क्योंकि उन्होंने हैप्पीनेस पा लिया है
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आत्मा के कल्याण के लिए हमें बढ़िया बढ़िया चीज अंतःकरण में जाना है भगवान/महापुरुष की कोई बात हो कोई भगवत विषय कोई विचार उसे बड़े ध्यान से सुनो अन्दर ले जाओ उसका फायदा होगा
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ये बेकार की बाते, गंदी बाते, संसारी बाते ले जाओ अंतःकरण में वो इसको और अशुद्ध करें और गन्दा करें
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तुम किससे आशा करते हो की अमुख आदमी हमारे मुआफिक है या हमारी तारीफ करता है या हमारा हित चाहता है सब धोखा, जैसे हम करते हैं सबके लिए वैसे वो करता होगा हमारे लिए
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बुद्धिमान ये जो दोनों साइड में समझ रहे जैसे मैं एक्टिंग करता हूँ वैसे वो भी करता होगा
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अपने समान शील व्यसन में दोस्ती होती है, जहाँ 2 का प्रिंसिपल/सिद्धांत मिल गया वहाँ दोस्ती, जहाँ रुचि खत्म दोस्ती खत्म
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हमको 3 गुण का मायिक संसार चाहिए और महापुरुष कहतें है 3 गुण डेंजरस है तो हमारा उनका हिसाब बैठे कैसे
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मूर्ख व्यक्ति समझदार को मूर्ख कहेगा, समझदार व्यक्ति मूर्ख को मूर्ख कहेगा
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महापुरुष को महापुरुष मान कर चल रहे हो ये आश्चर्य है बड़ी भगवत कृपा और बड़ी विलक्षण बात है ये, ये आश्चर्यजनक बात है
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ईश्वरीय सरोवर में ही प्रेमानंद है यहीं प्यास बुझेगी ये समझ कर इस ओर आना, ये तो बड़ी स्पेशल भगवत कृपा, गुरु कृपा, संस्कार सब इकट्ठे हो, हिसाब बैठे तो कुछ काम बने
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जब तुम्हारे पास अहंकार का रोग है उस रोग के रहते हुए तुम ईश्वर की ओर चले, ये छप्पर फाड़ कृपा है भगवान की
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संसार में कहीं हमारा विरोध हो तो जरा भी आश्चर्य नई मुस्कराते रहो, कोई भी फीलिंग(क्रोध, द्वेष) न हो
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कोई बीमारी किसी में है (काम, क्रोध, लोभ, द्वेष, ईर्ष्या), तो तुम अपने अंदर बीमारी क्यों मोल लेते हो, लाते हो, छूत की बीमारी क्यों पैदा कर रहे हो, दूर रहो, बीमारी कम करो उसको बढ़ाओ मत, जैस COVID positive वालों से दूर रेहते हो शरीर के लिए
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किसी के गाली देने में तुम अगर आराम से बैठे रेहते हो(क्रोध, द्वेष रहित) तो अब भगवत प्राप्ति करने में तुम्हें कोई कठिनाई नहीं होगी क्योंकि अब तुम्हारे मन में गन्दगी प्लस नहीं होगी, अब तुम्हारा मन खाली हो गया
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संसार का स्वरूप समझ कर हमें भीतर वाले संसार को मिटाने का प्रयत्न करना है भीतर वाला संसार मिटे
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जब हम लोग पैदा हुए थे तो हमने कब कहा था रसगुल्ला लाओ, ये लोगों द्वारा अभ्यास करा करा के लगाई हुई बीमारी है
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1 अबोध बालक चपत खाने के बाद भूल गया मारने वाले को और जरा सा हाँथ को आगे बढ़ाया मारने वाले के गोद में आ गया, 1 शब्द बोला जब युवास्था में उसकी चोट इतनी गहरी की सारे जीवन तक गाँठ बांधे है ये उन्नति की अवनीति हुई है हमारी ?
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छोटा बच्चे की खोपड़ी में ये idea नहीं, क्या होता है पराया/अपना, उसको mood-off का मतलब ही नहीं पता
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हमारे मन का बनाया हुआ कामनात्मक/वासनात्मक संसार मिथ्या है
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हमे अपने मानसिक संसार को मिटाने का ही प्रयत्न करना है क्योंकि यदि वो मिट जाए तो बाहर का संसार कोई खतरा नहीं
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जीतने देर आप सोते हैं उतने देर बाहर का वर्तमान संसार माइनस लेकिन इससे भीतर का संसार समाप्त नहीं हुआ क्योंकि सपने में वही संसार शोक दुख भय प्रेम वियोग का अनुभव करते हैं जैसे जागरत में करते हैं
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बाहर का संसार तब तक डेंजरस है जब तक भीतर का संसार बना है
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बाहर के संसार को विषय बनाकर भीतर वाला संसार बढ़ जाता है, काम क्रोध लोभ किसी का वातावरण हमको मिलता है तो भीतर रेहने वाले दोष बलवान हो जाता है जैसे जलती हुई आग में कोई घी डाल दे और एकदम दुग्नित हो जाए
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वस्तु के देखने से मन का जो रोग था वो उभर आया बलवान हो गया, जैसे रसगुल्ला पास होने से उसकी लालच बलवान हो गई
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यदि बाहर का संसार न मिले तो भीतर का संसार दबा रहता है नष्ट नहीं होता दबा रहता है
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जो वातावरण आपको मिलेगा वही दोष बढ़ेगा, वो दोष पहचानता है अपने वातावरण को, लोभ के वातावरण में क्रोध नहीं आएगा
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जब तक भीतर का संसार न मिटे तब तक बाहर का संसार सब कुछ कर सकता है
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दोषों को मिटाने की दवा करो इनके बढ़ाने का एटमॉस्फियर न दो
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यदि बाहर का सब्जेक्ट न मिले कामनाएं नहीं बढ़ेंगी
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भीतर के संसार को नष्ट करने के लिए स्पिरिचुअल दिया तो + होता जा रहा है, - नहीं होगा अगर बाहरी सब्जेक्ट न दें
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इन बाहरी अनावश्यक गन्दगी से, एटमॉस्फियर/ वातावरण से, यथासंभव पूरी शक्ति लगाकर बचने का अभ्यास करना है
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कुसंग माने ‘कु’ माने जिसमें भगवान के प्रेम पैदा होने की बात न हो वो सब कुसंग
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धधकते हुए आग के अंगारों के कटघरे में बंद हो कर जल जाना अच्छा लेकिन कुसंग में पड़ जाना अधिक खतरनाक
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भीतर के संसार को कम करने के लिए 1 दवा तो ये है की बाहर का संसार कम से कम दो
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मन/अज्ञान से कह दो अब तुम्हारी नहीं चलेगी बहुत चल चुकी, मन कह रहा हा वो नहीं करेंगे, गुरु/ज्ञान के अनुसार चलना है
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सावधान होकर हमें अपने मन की कामाओं को बढ़ने से रोकना है, संसार के वातावरण से बहुत बचाना है
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अपना मतलब हल हो गया तुम बड़े अच्छे हो, मतलब हल नहीं हो तुम बड़े खराब हो, ये दोस्ती है संसार की
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ऐसी बातें न करो न सुनो जिससे हमारे मन को गड़बड़ करने का चांस मिले हमारा मन मायिक दोषों से मुग्ध/अभिभूत हो
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बाहर का संसार न दोगे तब भी पहले संसार मिल चुका है बाहर का उसका चिंतन करेगा मन वो खाली नहीं रह सकता 1 क्षण को
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मन को छुट्टी न दो, मन को खाली न रखो, मन 1 भूत है यदि मन को ईश्वरीय सब्जेक्ट नहीं देते तो संसार में जाएगा
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जिस संसार से कुछ मिलना जुलना नहीं उसी के चिंतन को बढ़ा कर के हम बीमारी/दुख पैदा करते हैं
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ये सिद्धांत बना लेना है की मन खाली न रह पाये 1 क्षण को, सदा उसको लगाए रहो ईश्वर की ओर
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2 विरोधी साधनाऐं हमें करनी है ईश्वरीय वातावरण देना क्योंकि आनंद है संसारी वातावरण से बचना क्योंकि खतरनाक है
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बस चिंतन में सारा कमाल है जिस सब्जेक्ट का बार बार चिंतन होता है उसी में अटैचमेंट हो जाया करता है
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संसार में सुख का बार बार चिंतन करोगे और अटैचमेंट होगा या हुआ है तो सुख मिला नही फिर भी अटैचमेंट हो गया है पक्का
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ईश्वर का बार बार चिंतन करोगे तो मन का अटैचमेंट भी होगा और सुख ही मिलेगा इसलिए अटैचमेंट पक्का हो जाएगा
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जहाँ सुख नहीं मिला वहाँ से मन हटाने में क्या मुश्किल है मुश्किल ये है की ईश्वर की ओर सुख नहीं मिला क्योंकि मन को खाली छोड़ दिया निरंतर अभ्यास नहीं किया
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सदा मन को ईश्वरीय सब्जेक्ट में लगाना है इसका नाम अभ्यास और संसार से हटाना है इसका नाम वैराग्य
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हम आनंद चाहते हैं ईश्वर में ही आनंद और संसार में आनंद है ही नहीं इसलिए संसार से डाइवर्ट करके ईश्वर में लगाना समझ कर
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संसार के स्वरूप को अच्छी प्रकार समझ कर भीतर वाले संसार को मिटाने के लिए 2 इलाज करना है बाहर वाले संसार से बचना और भीतर वाले संसार को जो जिस रूप में है उसको डाइवर्ट करना ईश्वरीय संसार की ओर ले जाना
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कोई भी नॉलेज कोई भी ज्ञान जब तक हमेशा साथ नहीं रहेगा तब तक सफलता नहीं मिलेगी
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ज्ञान भूलने न पाए उसकी लिंक बनी रहे सदा सर्वत्र तब काम बनेगा उस ज्ञान शस्त्र का सदा ध्यान रहे, उस गुरु वाणी को
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ज्यों ज्यों ईश्वर की ओर चलेगा त्यों त्यों संसार से हटेगा वैराग्य होता जाएगा
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होना बाद में होगा पहले करना होगा, पहले करना फिर होना, पहले प्रैक्टिस फिर अपने आप होने लगता है
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यदि संसार आपकी खोपड़ी में आ सकता है बार बार अभ्यास करने से वो क्यों नहीं आयेगा जहाँ अनंत आनंद भरा हुआ है